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हमारे जीवन के दो ही पहलू होते है एक जिंदगी और दूसरा मौत , जिंदगी जीने की तमन्ना सबकी होती है लेकिन मौत सब लोग नही चाहते, परन्तु अगर जीवन मौत से भी खराब हो जाय तो इंसान के पास अन्त मे एक ही चारा बचता है और वह होता है मौत को गले लगाना । मौत भी अपने अधिकार क्षेत्र मे न होकर कानून के दायरे मे होता है,अगर आदमी कायरो के भांति न मरकर शान से मरना चाहे तो उसे सरकार के यहाँ गुहार लगनी पड़ती है।जब जिंदगी से हार कर मनुष्य को अगर कुछ दिखायी नही देता है तो वह दया मृत्यु की माँग करता है।हमारे देश मे अगर कोई भी दयामृत्यु की मांग करता है तो उसको दे देना चाहिये बशर्ते परिस्थितियों को ध्यान मे रखते हुए । क्योकि आजकल ये भी एक फैशन सा बन गया है जिस किसी के पास कोई दिक्कत आ गयी तो वो उस समस्या को झेलने के पहले दया मृत्यु के लिए राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास अर्जी लगा देता है। इसलिये जितने भी मामले राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास आते है उनको ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिये उसके बाद ही उस पर फैसला लेना चाहिये। कुछ परिस्थितियों मे तो दया मृत्यु देना ही बेहतर है क्योकि कुछ लोगो के साथ भगवान भी न्याय नही कर पाते और वे गम्भीर बीमारी से पीड़ित चारपाई पर सालों पड़े रहते है तो ऐसे लोग क्या करेगे परिवार मे रह कर । परिवार गम्भीर बीमारी की वजह से कंगाल होता जाता है बहुत पैसे लगाने के बाद भी इंसान ठीक नही हो पाता तो उस परिस्थितियों मे इंसान के पास कोई चारा नही बचता, इलाज कराते-कराते मनुष्य थक जाता है और अंत मे फिर मरने की इच्छा जागती है।
कोई भी मनुष्य मरने की इच्छा नही रखता ,वह परिस्थितियों के कारण ही मरने के बारे मे सोचता है। उसके हिसाब से जब चारो तरफ से दरवाजे बन्द हो जाते है तब एक ही दरवाजा उसको खुला दिखता है और वह दरवाजा है यमराज का दरवाजा। उस दरवाजे मे घुसने के लिये अपने देश के राजा की मुहर चाहिए। इसलिए मेरे विचार से अगर कोई गम्भीर बीमारी से ग्रसित है और वह दया मृत्यु की मांग कर रहा है तो उसको अवश्य मृत्यु देना चाहिए,क्योंकि अगर वो मनुष्य बिल्कुल जीने के लायक नही है तो उसको रखकर क्या करेगे।बीमार आदमी जो बिल्कुल ठीक नही हो सकता उसको दया मृत्यु देना ही फायदेमन्द रहेगा उस ब्यक्ति के लिये और उसके परिवार के लिए।। ———————————————————————-नीरज कुमार पाठक आई सी ए आई भवन सी-1 सेक्टर-1 नोयडा 201301 ———————————————————————-
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