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भारतीय लोकतंत्र मे सबको रहने का अधिकार मिला हुआ है चाहे वह किसी धर्म या जाति से ताल्लुक रखता हो, लेकिन अधिकार मिलने से क्या फायदा ,जब ब्यक्ति को अपनी जन्मभूमि से ही पलायन करना पड़े। कोई भी इंसान शौक मे अपना घर,अपनी जन्मभूमि नही छोड़ना चाहता ,अगर वह घर छोड़ता है तो उसके ऊपर जरूर मजबूरी की चद्दर होती है। घर छोड़ कर कोई आदमी बाहर जाता है तो वह दो परिस्थितियों मे जा सकता है पहला रोजी-रोजगार के लिये और दूसरा भय और दहशत के कारण। लेकिन यूपी के शामली जिले से जो लोग घर छोड़ कर जा रहे है वे रोजी-रोजगार के लिये नही बल्कि भय और दहशत के कारण। अब यहाँ पर भय और दहशत कहाँ से आया ये तो उत्तर प्रदेश प्रशासन का काम है बताना, लेकिन अफसोस उस राजनीति की ,जिसमे भय और दहशत को रोजी-रोजगार के लिये घर छोड़ना बताया जा रहा है। नब्बे के दशक मे जो हाल कश्मीरी पंडितो के साथ हुआ था वही हाल इन 346 हिन्दुओ का हो रहा है। बस अंतर इतना है कि वहाँ पर आतंकवादियो ने अल्टीमेटम दिया था घर छोड़ने के लिए,लेकिन कैराना मे बिना अल्टीमेटम के ही लोग घर छोड़ रहे है,क्योकि उनके अन्दर एक खौफ समा गया है कि कही से मौत न आकर टकरा जाये। प्रकृति कि विडम्बना कहे या प्रशासनिक लापरवाही कि हम अपने ही देश मे शरणार्थी बन कर रह रहे है। अपने देश का ही एक राज्य जम्मू-कश्मीर मे पंडितो के साथ जो कुछ हुआ था ये कितना शर्मनाक बात थी। कितने लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया और जो बचे भी वे रातो रात भागकर अपनी जान बचाये। आज उनकी दशा ये है कि अपना घर ,खेती की जमीन सब छोड़ कर कही शरणार्थी बन कर बैठे है,और सब कुछ होते हुए भी खानाबदोश की जिन्दगी जी रहे है। इनके हालात इतने बुरे हो गए है लेकिन कोई भी सरकार आज तक उनको कश्मीर मे पुनःस्थापित नही कर पाई। ये हमारे सिस्टम की लापरवाही नही तो क्या है। इस मामले को कोई भी पार्टी चुनावी मुद्दा बना कर पंडितो को उनके घर क्यो नही वापस पहुँचाते।। आज कैराना के मामले मे सरकार को चाहिए कि पहले जांच कराए उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचे। लेकिन दुख इस बात का है कि बिना जांच के ही बता दिया गया है कि वे रोजी-रोटी के लिये घर से बाहर गये। आखिर कुछ तो सत्यता होगी,क्योकि अगर कही से धुंआ निकल रहा है तो इसका मतलब आग तो लगी है। बिना आग के धुँआ निकलना सम्भव नही है। ये समस्या गम्भीर है क्योकि आज तक सुनने मे आता था कि बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यक को परेशान करते है लेकिन यहाँ का हिसाब तो उल्टा जान पड़ता है।यहाँ अल्पसंख्यक लोग बहुसंख्यक को इतना मजबूर कर दे रहे है कि वह अपना घर छोड़ का भाग रहे है। इसलिए अगर ये मामला सही पाया जाय तो इस पर कड़ी करवाई होना चाहिए,और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिले। ता कि हमारे देश के अन्दर दूसरा कश्मीर न तैयार हो जाये। ———————————————————————-नीरज कुमार पाठक आईसीएआई भवन सी-1 सेक्टर-1 नोयडा 201301 ——————————————————————–
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