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हमारे भारत देश के लोग बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे है जो एक अच्छी बात है। हर नागरिक का फर्ज बनता है सपने देखना ।अपने देश के प्रगति के बारे मे सब लोग सोचते है कि हमारा भारत देश प्रगति के मार्ग पर दौड़ लगाये। केवल उनको छोड़कर जो भारत के टुकड़े करने को कहते है,टुकड़े करने वाले नही चाहेंगे की भारत विकास करे। बाकी भारतीय भारत के विकास को ही प्राथमिकता देंगे। इसी विकास की कड़ी मे जब महामना एक्सप्रेस को चलाया गया तो रेलवे प्रशासन ने बड़ी उम्मीद के साथ इसको पटरी पर उतारा था,इस उम्मीद के साथ कि हमारे भारतीय जनता इस लौह पथ गामिनी मे आरामपूर्वक गमन करेगे । लेकिन दुःख इस बात का है कि भारतीय जनता ने रेलवे के अरमानो पर पानी फेर दिया,और यात्रियों ने इस ट्रेन की ऐसी दुर्दशा किया कि रेलवे विभाग के खुशी को आँसू बहाने पर मजबूर कर दिया ।इस ट्रेन मे यात्रियों के लिये दीवारो पर तमाम फोटो लगाये गए,वाश वेसिन मे अच्छी क्वालिटी का नल लगा था,शौचालयों मे अच्छी गुणवत्ता के नल और शीट लगे थे। मतलब यात्रियों को भरपूर सुविधा देने की कोशिश की गयी ।लेकिन हमारे यहाँ यात्रियों ने कुछ ही दिनों के बाद नल,फोटो आदि सामान सब उखाड़ कर अपने घर ले गए।अब अगर यात्रीगण इस प्रकार से पेश आयेगे तो क्या हम बुलेट ट्रेन का सपना पूरा कर सकते है ।हमको सबसे पहले अपनी सोच को बदलना होगा ,तभी देश का विकास हो सकता है। भारतीय भीड़ का जो रेला चलता है उस समय अच्छी से अच्छी ट्रेन का सत्यानाश कर देते है क्योकि हमारे यहाँ दिक्कत क्या है की जनता भेड़ की तरह झुण्ड मे चलने की आदत है।इसी के कारण दुर्घटनाये भी होती रहती है।। इन्ही सब कारणों से रेलवे ने अपना सौर ऊर्जा से रेलवे को चलाने का कर्यक्रम ठंडे बस्ते मे डाल रक्खा है,क्योकि उनको सबसे ज्यादा डर है यहाँ के यात्रियों से । हमारे यहाँ के यात्री जब ट्रेन की छत पर बैठना शुरू कर देगे तो किसी की सुन नही सकते,छत पर बैठने का मतलब है कि सौर ऊर्जा का सब यन्त्र का तहस-नहस करना।इसी डर के कारण एक तैयार ट्रेन को नही चलाया जा रहा है कि कही महामना वाली हाल इसकी भी न हो जाये। क्योकि हमारे यहाँ की जनता ट्रेन के अन्दर कूड़ा करने मे आगे रहती है। कुछ भी खाया उसको ट्रेन की सीट के नीचे डाल देगे। बाथरूमो मे बिल्कुल सफाई नही रह जाती है। अब ये रेलवे की लापरवाही नही कह सकते। कोई भी चीज है उसको साफ -सुथरा रखना हमारा फर्ज है। लेकिन हम अपना फर्ज पूरा नही कर रहे है,और कचरा करते रहते है।सबको सोचना चाहिए की हर कार्य सरकार नही कर सकती,हमारा भी कुछ न कुछ फर्ज बनता है। लेकिन हमारे यहाँ की जनता कूड़ा करने मे माहिर है। अब चाहे वह रेलवे प्लेटफार्म हो ,बस स्टेशन हो या फिर हो नदियो मे गन्दगी का । इन सब आदतो को हम सबको छोड़ना होगा जिससे कि भारत को एक स्वच्छ राष्ट्र बना सके। ———————————————————————-नीरज कुमार पाठक आई.सी.ए.आई भवन सी -1 सेक्टर-1 नोयडा 201301 ———————————————————————-
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