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भारतवर्ष सबके लिये अच्छा तो है ही ,आढ़तियों के लिए भी स्वर्ग से कम नही है।लेकिन यही आढ़ती किसान, गरीब जनता के लिये गले की फास बन रहे है। गरीब लाचार लोग मजबूरी मे ब्याज पर कुछ रुपये उधार ले लेते है और उनके पास देने के लिये रुपये नही हो पाते, जिसके कारण वे आढ़तियों के आजीवन शिकार हो जाते है। ये गरीब जब आढ़तियों के मायाजाल मे आ जाते है तो परिणाम बहुत बुरा होता है, उनको अपना घर ,खेत इन आढ़तियों के भेंट चढ़वाने पड़ते है,और अंत मे किसान के पास कुछ नही बचता,अगर अपने हाथ मे कुछ बचता है तो अपना जीवन । इस जीवन के बारे मे हमे सोचना है कि इसे कैसे खत्म करना है।क्योकि इसके अलावा कोई चारा भी नही बचता।अब ये देखना है कि पंखे पर लटक कर या फिर कीटनाशक को खा कर ।कोई भी आदमी इन रास्तो पर चलना नही चाहता है लेकिन किसान के सामने जब सभी दरवाजे बन्द दिखाई देते है,तो उनको ये कदम उठने पड़ते है।इस संसार मे कोई भी ऐसा आदमी नही होगा जो मरना चाहेगा।आदमी परिस्थितियों मे जकड़ जाने के बाद इस रास्ते को चुनते है।और जब धैर्य जबाब देने लगता है तो वह इस आखरी रास्ते को चुनने के लिये बाध्य हो जाते है। अभी हाल ही मे ऐसी ही एक घटना बरनाला के जोधपुर गांव मे घटी,जिसमे आढ़तियों से परेशान माँ-बेटे ने अपनी जीवन- लीला कीटनाशक दवा पीकर समाप्त कर ली,जब की वे बार -बार समय मांग की माँग कर रहे थे,रुपये वापस करने के लिये, लेकिन उनकी बात कोई सुनने वाला नही था न तो आढ़ती और न ही प्रशासन। किसान लोगो से गुहार लगा-लगा कर थक गया तब जाके उसने इस रास्ते को चुना।इसलिये इस आढ़तियों के ऊपर बैन लगाकर कितनी जिंदगियो को बचाया जा सकता है।इस मामले मे पूर्णतया रोक लगाने की जरूरत है इसमे लेना और देना दोनो को प्रतिबन्धित कर देना चाहिये।क्योकि आढ़ती भी मोटा रुपया कमाने के लिए तुरंत तैयार हो जाते है,चूँकि ब्याज की ग्रेड काफी ऊंचा होता है। इसलिये किसानो के लिए भारी हो जाता है,पैसा चुकाना। किसान तो मूलधन दे ही नही पाता ब्याज की रकम देने मे उसकी जिंदगी कट जाती है।कुछ किसानो के तो लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ब्याज भरते रहते है।। ये एक ऐसा शोषण का तरीका है जिसमे किसान जिंदा तो रहता है लेकिन घुट-घुट कर मरता रहता है। जितना किसान कमजोर होता है उतना ही आढ़ती मजबूत होता है। क्या गरीब होना इतना गुनाह होता है कि उसको समय से पहले ही मृत्यु को गले लगाना पड़े। आखिर आदमी इतना मजबूर क्यो हो जाता है कि उसके सामने मौत के अलावा कोई चारा नही बचता ।इन्ही सब कारणों के वजह से किसान असहाय हो जाता है ,उसके जीवन की सब आशाये खत्म हो जाती है। ———————————————————————————————-नीरज कुमार पाठक————— आई.सी.ए.आई भवन सी-1 सेक्टर-1 नोएडा 201301 ———————————————————————–
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